Skip to main content

Posts

Biography of samrat mihir bhoj pratihar [rajput hai ya gujjar ]

Biography of samrat mihir bhoj pratihar  [rajput hai ya gujjar ]  Once upon a time, in the ancient kingdom of Malwa, there lived a wise and illustrious ruler known as Rajpur Emperor Mihir Bhoj. His reign, which spanned from 836 to 890 BC, was marked by greatness and cultural advancement. He was revered as Brahmasamrat, Raja Bhoj, and Rajpur Bhoj, names that echoed his wisdom and might. Born in the beautiful city of Rajpur, now located in the heart of Madhya Pradesh, India, Mihir Bhoj belonged to the royal Malwa dynasty. His father, Rajpur Bhoj II, fondly called Veerbhoj, served as the Emperor Officer of Rajpur, and Mihir Bhoj followed in his father's footsteps to ascend the throne as the Maharaja of Rajpur. Under his majestic rule, Rajpur flourished into a bustling hub of culture, arts, education, and literature. King Mihir Bhoj was not only a powerful ruler but also a learned scholar with a deep understanding of religious and political matters. He passionately believed in the impo
Recent posts

राजपूत ya गुज्जर - aakhir kon h mihir bhoj

राजपूत vs गुज्जर - मिहिर भोज पर नमस्कार दोस्तों! आज हम एक रोचक विषय पर चर्चा करने वाले हैं - राजपूत बनाम गुज्जर और उनके इतिहास में महत्वपूर्ण व्यक्ति मिहिर भोज पर। आइए, इस विषय को सरलता से समझते हैं और दोनों समुदायों के बीच के मुद्दे को विश्लेषण करते हैं। प्राचीन भारत के इतिहास में राजपूत और गुज्जर समुदाय दो अलग-अलग समुदाय हैं, जो अपने समृद्ध इतिहास, संस्कृति और वीरता के लिए प्रसिद्ध हैं। मिहिर भोज भी एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे, जिनका नाम इतिहास में उच्च स्थान रखा गया है। राजपूत समुदाय वीरता, शौर्य और धरोहर के संरक्षक के रूप में प्रसिद्ध है। उनका इतिहास महाबारत से शुरू होता है और उनकी धरोहर शानदार राजमहल, शिल्पकला और संस्कृति में दिखती है। वे धर्म, शक्ति और समरसता के प्रतीक हैं और अपनी अद्भुत कथाओं से इतिहास के पन्नों पर चमकते हैं। वहीं, गुज्जर समुदाय भी भारतीय इतिहास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वे शीतोष्ण जलवायु के लोग हैं और अपनी मेहनती और साधारण जीवनशैली के लिए जाने जाते हैं। गुज्जर समुदाय के लोग कृषि और गांवी जीवन के लिए प्रसिद्ध हैं और उनके गायन, नृत्य और धार्मिक आयोजनों म

Rajput samrat prithviraj chauhan - राजपूत सम्राट पृथ्वीराज चौहान history

"तराइन की दूसरी लड़ाई के घातक दुष्परिणाम" (1192 ई. से 1206 ई. तक) शहाबुद्दीन गौरी ने सम्राट पृथ्वीराज चौहान की राजधानी अजमेर, सवालक, हांसी व सरस्वती पर फ़तह हासिल की शहाबुद्दीन गौरी ने सम्राट के पुत्र गोविंदराज से अधीनता स्वीकार करवाकर उसको अजमेर की गद्दी पर बिठाया गौरी ने अजमेर में मंदिरों का विध्वंस करके मस्जिदें बनवाने का हुक्म दिया फिर सम्राट पृथ्वीराज चौहान के भाई हरिराज ने गौरी की अधीनता स्वीकार करके गोविन्दराज से अजमेर छीन लिया गोविन्दराज रणथंभौर में रहने लगे "तराइन की दूसरी लड़ाई के 16 दिन बाद की घटना" तराइन की लड़ाई में दिल्ली के राजा चाहड़पाल तोमर के पुत्र तेजपाल द्वितीय भी मौजूद थे, जो अन्य जीवित बचे राजाओं को साथ लेकर दिल्ली पहुंचे दिल्ली में फिर लड़ाई हुई, जिसके बाद तेजपाल तोमर ने संधि करके अधीनता स्वीकार की सुल्तान जब गज़नी की तरफ लौट गया तो एक वर्ष बाद 1193 ई. में तेजपाल तोमर ने फिर से दिल्ली जीतने की कोशिश की। तेजपाल ने राजपूतों व हरियाणा के जाट, अहीर, गूजरों की मिली-जुली फौज एकत्र की, लेकिन गौरी का ग़ुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक विजयी रहा। हसन निजामी के

युद्ध भूमि हल्दीघाटी का इतिहास - haldighati ka itihas

 युद्ध भूमि हल्दीघाटी का इतिहास - haldighati ka itihas   क्या आपने कभी पढ़ा है कि हल्दीघाटी के बाद अगले १० साल में मेवाड़ में क्या हुआ? इतिहास से जो पन्ने हटा दिए गए हैं उन्हें वापस संकलित करना ही होगा क्यूंकि वही हिन्दू रेजिस्टेंस और शौर्य के प्रतीक हैं इतिहास में तो ये भी नहीं पढ़ाया गया है की हल्दीघाटी युद्ध में जब महाराणा प्रताप ने कुंवर मानसिंह के हाथी पर जब प्रहार किया तो शाही फ़ौज पांच छह कोस दूर तक भाग गई थी और अकबर के आने की अफवाह से पुनः युद्ध में सम्मिलित हुई है ये वाकया अबुल फज़ल की पुस्तक अकबरनामा में दर्ज है। क्या हल्दी घाटी अलग से एक युद्ध था या एक बड़े युद्ध की छोटी सी घटनाओं में से बस एक शुरूआती घटना महाराणा प्रताप को इतिहासकारों ने हल्दीघाटी तक ही सिमित करके मेवाड़ के इतिहास के साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है वास्तविकता में हल्दीघाटी का युद्ध महाराणा प्रताप और मुगलों के बीच हुए कई युद्धों की शुरुआत भर था मुग़ल न तो प्रताप को पकड़ सके और न ही मेवाड़ पर अधिपत्य जमा सके हल्दीघाटी के बाद क्या हुआ वो हम बताते हैं। हल्दी घाटी के युद्ध के बाद महाराणा के पास सिर्फ 7000 सैनिक ही बचे थे और

राजपूतो का गौरवशाली इतिहास - rajputo ka gauravshali itihas

राजपूतो का गौरवशाली इतिहास ।। आपका रक्त धीमा पढ़ जाएगा जरा ध्यान से पढ़िए शूरवीर राजपूत योद्धाओं के महान सत्य....जय राजपुताना का जयकारा जरूर लगाइए... 1. चित्तौड़ के जयमाल मेड़तिया ने एक ही झटके में हाथी का सिर काट डाला था । 2. करौली के जादोन राजा अपने सिंहासन पर बैठते वक़्त अपने दोनो हाथ जिन्दा शेरों पर रखते थे । 3. जोधपुर के जसवंत सिंह के 12 साल के पुत्र पृथ्वी सिंह ने हाथोँसे औरंगजेब के खूंखार भूखे जंगली शेर का जबड़ा फाड़ डाला था । 4. राणा सांगा के शरीर पर युद्धोंके छोटे-बड़े 80 घाव थे। युद्धों में घायल होने के कारण उनके एक हाथ नहीं था, एक पैर नही था, एक आँख नहीं थी। उन्होंने अपने जीवन-काल में 100 से भी अधिक युद्ध लड़े थे । 5. एक राजपूत वीर जुंझार जो मुगलों से लड़ते वक्त शीश कटने के बाद भी घंटे तक लड़ते रहे आज उनका सिर बाड़मेर में है, जहाँ छोटा मंदिर हैं और धड़ पाकिस्तान में है। 6. रायमलोत कल्ला का धड़, शीश कटने के बाद लड़ता-लड़ता घोड़े पर पत्नी रानी के पास पहुंच गया था तब रानी ने गंगाजल के छींटे डाले तब धड़ शांत हुआ। 7. चित्तौड़ में अकबर से हुए युद्ध में जयमाल राठौड़ पैर ज

राणा सांगा - राजपूतो की शान

राणा सांगा दुनिया के इतिहास में शायद क्षत्रिय ही सिर्फ इकलौती कौम है, जिसके वीरता और पराक्रम की गाथाएं दुश्मनों की लिखी हुई किताबों में अधिक मिलती है। चंगेज खान और तैमूर के वंशज बाबर ने अपनी आत्मकथा पुस्तक "बाबरनामा"में अपने समय राजपूत "राणा सांगा"जी की शक्ति का वर्णन किया है, कि कैसे खानवा के युद्ध से पहले जिसमे उसने तोपो बंदुखो/बारूदो का इस्तेमाल नहीं किया था और उस कन्वेंशनल युद्ध में जिसे बयाना का युद्ध कहा जाता है। उस परंपरागत हुए युद्ध में किस तरह राजपूतों ने उसे बुरी तरह परास्त किया था। जब चंगेज खान का वंशज और मुगल साम्राज्य का संस्थापक बाबर ने लिखा कि राजपूत अपनी वीरता तलवार पराक्रम के बल उस समय सबसे बड़ी शक्ति थे। जिनका सामना करने की हिम्मत दिल्ली गुजरात मालवे के सुल्तानों में एक भी बड़े सुल्तान में नहीं थी। ये ताकत राजपूतों की शुरुआती 16 वी सदी में थी। जब तुर्क अफ़ग़ान शक्तियां भी अपने चरम पर थी। तो राजपूतों को उनसे प्रमाण की जरूरत नहीं जिनका 18 वी सदी से पहले कोई इतिहास ही नहीं। पूरे उपमहाद्वीप में कोई गैर राजपूत शक्ति नहीं जिनके सैनिक शक्ति का