"तराइन की दूसरी लड़ाई के घातक दुष्परिणाम" (1192 ई. से 1206 ई. तक)
शहाबुद्दीन गौरी ने सम्राट पृथ्वीराज चौहान की राजधानी अजमेर, सवालक, हांसी व सरस्वती पर फ़तह हासिल की
शहाबुद्दीन गौरी ने सम्राट के पुत्र गोविंदराज से अधीनता स्वीकार करवाकर उसको अजमेर की गद्दी पर बिठाया
गौरी ने अजमेर में मंदिरों का विध्वंस करके मस्जिदें बनवाने का हुक्म दिया
फिर सम्राट पृथ्वीराज चौहान के भाई हरिराज ने गौरी की अधीनता स्वीकार करके गोविन्दराज से अजमेर छीन लिया
गोविन्दराज रणथंभौर में रहने लगे "तराइन की दूसरी लड़ाई के 16 दिन बाद की घटना" तराइन की लड़ाई में दिल्ली के राजा चाहड़पाल तोमर के पुत्र तेजपाल द्वितीय भी मौजूद थे, जो अन्य जीवित बचे राजाओं को साथ लेकर दिल्ली पहुंचे
दिल्ली में फिर लड़ाई हुई, जिसके बाद तेजपाल तोमर ने संधि करके अधीनता स्वीकार की
सुल्तान जब गज़नी की तरफ लौट गया तो एक वर्ष बाद 1193 ई. में तेजपाल तोमर ने फिर से दिल्ली जीतने की कोशिश की। तेजपाल ने राजपूतों व हरियाणा के जाट, अहीर, गूजरों की मिली-जुली फौज एकत्र की, लेकिन गौरी का ग़ुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक विजयी रहा। हसन निजामी के अनुसार कुतुबुद्दीन ने तेजपाल का सिर काटकर लालकोट किले पर टांग दिया और इस तरह दिल्ली पर तोमर राजवंश का अंत हुआ
कुतुबुद्दीन ने तोमरों द्वारा निर्मित 27 मंदिर-प्रासाद तुड़वाकर उनके अवशेषों पर चूना चढ़वाकर कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद बनवाई
फिर अजमेर के हरिराज चौहान ने दिल्ली से कुतुबुद्दीन को निकालने के लिए अपने सेनापति चतरराय को भेजा, लेकिन चतरराय पराजित होकर लौट आया
1194 ई. में शहाबुद्दीन गौरी फिर हिंदुस्तान आया
गौरी ने बनारस व चन्दवाल पर फ़तह हासिल की
गौरी ने कन्नौज के राजा जयचंद गहड़वाल को चंदावर की लड़ाई में शिकस्त दी
इन लड़ाइयों में गौरी ने 300 हाथी और बहुत सा सामान लूटा और अपने साथ गज़नी ले गया
1195 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने हरिराज को पराजित करके उससे अजमेर छीन लिया और वहां मुस्लिम हाकिम नियुक्त किया
इस तरह प्रतापी चौहान साम्राज्य का अंत हुआ और राजपूताने के मध्य (अजमेर) में मुस्लिमों का कब्ज़ा हो गया
इसी वर्ष कुतुबुद्दीन ऐबक ने गुजरात पर हमले किए, जिसका बदला लेने के लिए गुजरात वालों ने मेरों की मदद लेकर कुतुबुद्दीन को अजमेर तक खदेड़ दिया और अजमेर पर घेरा डाल दिया
तब गौरी ने ग़ज़नी से फौज फिजवाकर यह घेरा उठवाया
अंगुल अष्ट प्रमाण,
ता ऊपर सुल्तान है
मत चुके चौहान”
राजपूत सम्राट श्री पृथ्वीराज चौहान की तलवार कोटा के संग्रहालय में है, बूंदी-कोटा जो हाड़ौती कहलाता है और हाडा चौहान राजपूत का गढ़ है
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