वीर कहता है - मेरा सिर या तो ईश्वर के
चरणों में झुक कर धरती को स्पर्श करता है ^
या फिर दूसरों के हित में कट कर भूमि क चरणों में
झुकता है
^
ऐसा मेरा स्वाभिमानी मस्तक शत्रुओं के समक्ष
कैसे झुक सकता है
^
तलवार से कडके बिजली,
लहु से लाल हो धरती,
^
हे भगवती ऐसा वर दो मोहि,
विजय मिले या वीरगति ॥
👑 रण खेती रजपूत री , कबहू न पीठ धरे !!
!! देश रुखाले आपणे , दुखिया री पीड़ हरे !!
#मध्यकालीन #भारत की एक महान उक्ति /कहावत जब #क्षत्रिय (राजपूतों) ने #शास्त्र #खूंटी पर टांग दिए थे और #शस्त्रों को अपनी #संगिनी बना लिया था !....अंदाजा लगा सकते हैं आप , वह दौर कितना भयानक रहा होगा !
भावार्थ :- युद्ध एक खेत है , जहां क्षत्रिय फसल की भांति दिन रात डटा रहता जैसे खेत में फसल होती है न , वहीं पैदा होना , वहीं बढ़ना और अंत में वहीं मर भी जाना ! राजपूत कभी युद्ध में अपनी पीठ नही दिखाते और अपने देश की रक्षा करके , अपनी प्रजा के दुखो को दूर करते हैं।
#mahranapratap
#singh
#rajputsamratprithvirajchauhan
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