Skip to main content

राणा सांगा - राजपूतो की शान

राणा सांगा
दुनिया के इतिहास में शायद क्षत्रिय ही सिर्फ इकलौती कौम है, जिसके वीरता और पराक्रम की गाथाएं दुश्मनों की लिखी हुई किताबों में अधिक मिलती है।
चंगेज खान और तैमूर के वंशज बाबर ने अपनी आत्मकथा पुस्तक "बाबरनामा"में अपने समय राजपूत "राणा सांगा"जी की शक्ति का वर्णन किया है, कि कैसे खानवा के युद्ध से पहले जिसमे उसने तोपो बंदुखो/बारूदो का इस्तेमाल नहीं किया था और उस कन्वेंशनल युद्ध में जिसे बयाना का युद्ध कहा जाता है। उस परंपरागत हुए युद्ध में किस तरह राजपूतों ने उसे बुरी तरह परास्त किया था।

जब चंगेज खान का वंशज और मुगल साम्राज्य का संस्थापक बाबर ने लिखा कि राजपूत अपनी वीरता तलवार पराक्रम के बल उस समय सबसे बड़ी शक्ति थे। जिनका सामना करने की हिम्मत दिल्ली गुजरात मालवे के सुल्तानों में एक भी बड़े सुल्तान में नहीं थी।

ये ताकत राजपूतों की शुरुआती 16 वी सदी में थी। जब तुर्क अफ़ग़ान शक्तियां भी अपने चरम पर थी। तो राजपूतों को उनसे प्रमाण की जरूरत नहीं जिनका 18 वी सदी से पहले कोई इतिहास ही नहीं।

पूरे उपमहाद्वीप में कोई गैर राजपूत शक्ति नहीं जिनके सैनिक शक्ति का वर्णन अरबों तुर्क अफगानो से लेकर अंग्रजों तक किताबों में दर्ज हो।

राणा सांगा और राजपूतों की शक्ति का वर्णन "तारीख ए अहमद शाही उर्फ तारीख ए सलतानी अफगाना में 16 वी सदी के प्रसिद्ध अफ़ग़ान इतिहासकार अहमद यादगार सहित कई अफ़ग़ान इतिहासकारों ने भी किया है, कि कैसे मुट्ठी भर राजपूतों की सेनाओं ने इब्राहिम लोधी के अपने से दो से तीन गुना संख्या में ज्यादा होने के बावजूद अफ़ग़ान घुड़सवारों को परास्त किया था।


राजपूत और अफगान युद्ध 16 वीं शताब्दी में भारत: स्वतंत्र राज्यों का समय (1388-1526)
1) खतोली की बटालियन (1518) राणा सांगा (मेवाड़ साम्राज्य बनाम लोदी साम्राज्य)
परिणाम: निर्णायक राजपूत विजय
प्रादेशिक परिवर्तन: राणा साँगा द्वारा उत्तर पूर्वी राजस्थान अनुबंधित!

2) धौलपुर की बटालियन (1519):
राणा साँगा और इब्राह्मण लोदी
परिणाम: निर्णायक राजपूत विजय
प्रादेशिक परिवर्तन: संगा सैन्य प्रभाव की सीमा आगरा की हड़ताली दूरी के भीतर विस्तारित हुई
राजपूत: 10,000 घुड़सवार (कलवारी)
5000: इन्फैंट्री
अफगान: 30,000 घुड़सवार
10,000: पैदल सेना

3) सामिल की लड़ाई (1544)
जैतारण राजस्थान भारत
राजा मादो राठौर, जैता राठौर, कुम्पा राठौर बनाम शेरशाह सूरी, खवास खान मारवात, इस खान नियाजी
ताकत: 80,000 पस्तुन, 40 तोप: राठौर घुड़सवारों के छोटे बैंड (10,000)
हताहत और हताहत: दोनों तरफ भारी
परिणाम: अफगान विजय (यह 16 वी शताब्दी के सबसे भीषण युद्धो में एक रहा है ज़िसमे राजपूतो की 10,000 की फौज ने शेर शाह सुरी की 80,000 अफगान सेना को भयानक नुकसान पहुंचाया) इस युद्ध के बाद शेर शाह सुरी नें अपने सेनानायक खवास खान से कहा गया था "ज़िसका ज़िक्र समकालिन (समकालीन) तारिख_ए_दा सीएन में मिलता है ज़िसमे शेर शाह सुरी नें अपने सेनापति ख्वास खान से कहा था"
मुठ्ठीभर बाजरे के चक्कार में I हिंदुस्तान की दिल्ली सल्तनत गवाँ दी होती!!

तारिख-ए-दाउदी के शब्दों में:
जया (जैता) और गोहा (कुम्पा) में से कुछ सरदारों ने आकर शेरशाह सूरी पर हमला किया और अफ़ग़ान सेना के वेलोर हिस्से को पार कर विस्थापित हो गए, और कुछ अफगान को शर्म करने के लिए आया और इस मूल भाषा में चिल्लाया "सेना के लिए माउंट" infidels आपकी सेना को मार्ग दे रहे हैं, sher shah ने अपने घोड़ों को आदेश दिया और विजय के समाचार को इस बात के लिए "रिट्रीट" के लिए तैयार किया कि जब उसके आदमियों ने जैता और कुम्पा को मार दिया था। शेहर ने कहा कि बाजरे के कुछ दानों के लिए "टिप्पणी करें"। बाजरा, जो बंजर मारवाड़ की मुख्य फसल है "मैं लगभग हिंदुस्तान के पूरे राज्य को खो चुका हूं"

इतिहासकार "सतीश चंद्र" के अनुसार "कटआउट रिमार्क", मैंने दिल्ली को देश दिया था "एक मुट्ठी भर के लिए" जेटा और कुम्पा की वीरता और राजपूतों की इच्छा का सामना करना पड़ता है। विषम ”।।

Comments

Popular posts from this blog

meaning of real क्षत्रिय - विजय या वीरगति

वीर कहता है - मेरा सिर या तो ईश्वर के चरणों में झुक कर धरती को स्पर्श करता है ^ या फिर दूसरों के हित में कट कर भूमि क चरणों में झुकता है ^ ऐसा मेरा स्वाभिमानी मस्तक शत्रुओं के समक्ष कैसे झुक सकता है ^ तलवार से कडके बिजली, लहु से लाल हो धरती, ^ हे भगवती ऐसा वर दो मोहि, विजय मिले या वीरगति ॥ 👑 रण खेती रजपूत री , कबहू न पीठ धरे !! !! देश रुखाले आपणे , दुखिया री पीड़ हरे !! #मध्यकालीन #भारत की एक महान उक्ति /कहावत जब #क्षत्रिय (राजपूतों) ने #शास्त्र #खूंटी पर टांग दिए थे और #शस्त्रों को अपनी #संगिनी बना लिया था !....अंदाजा लगा सकते हैं आप , वह दौर कितना भयानक रहा होगा ! भावार्थ :- युद्ध एक खेत है , जहां क्षत्रिय फसल की भांति दिन रात डटा रहता जैसे खेत में फसल होती है न , वहीं पैदा होना , वहीं बढ़ना और अंत में वहीं मर भी जाना ! राजपूत कभी युद्ध में अपनी पीठ नही दिखाते और अपने देश की रक्षा करके , अपनी प्रजा के दुखो को दूर करते हैं। #mahranapratap #singh #rajputsamratprithvirajchauhan  ...

Biography of samrat mihir bhoj pratihar [rajput hai ya gujjar ]

Biography of samrat mihir bhoj pratihar  [rajput hai ya gujjar ]  Once upon a time, in the ancient kingdom of Malwa, there lived a wise and illustrious ruler known as Rajpur Emperor Mihir Bhoj. His reign, which spanned from 836 to 890 BC, was marked by greatness and cultural advancement. He was revered as Brahmasamrat, Raja Bhoj, and Rajpur Bhoj, names that echoed his wisdom and might. Born in the beautiful city of Rajpur, now located in the heart of Madhya Pradesh, India, Mihir Bhoj belonged to the royal Malwa dynasty. His father, Rajpur Bhoj II, fondly called Veerbhoj, served as the Emperor Officer of Rajpur, and Mihir Bhoj followed in his father's footsteps to ascend the throne as the Maharaja of Rajpur. Under his majestic rule, Rajpur flourished into a bustling hub of culture, arts, education, and literature. King Mihir Bhoj was not only a powerful ruler but also a learned scholar with a deep understanding of religious and political matters. He passionately believed in the...

राजपूतो का गौरवशाली इतिहास - rajputo ka gauravshali itihas

राजपूतो का गौरवशाली इतिहास ।। आपका रक्त धीमा पढ़ जाएगा जरा ध्यान से पढ़िए शूरवीर राजपूत योद्धाओं के महान सत्य....जय राजपुताना का जयकारा जरूर लगाइए... 1. चित्तौड़ के जयमाल मेड़तिया ने एक ही झटके में हाथी का सिर काट डाला था । 2. करौली के जादोन राजा अपने सिंहासन पर बैठते वक़्त अपने दोनो हाथ जिन्दा शेरों पर रखते थे । 3. जोधपुर के जसवंत सिंह के 12 साल के पुत्र पृथ्वी सिंह ने हाथोँसे औरंगजेब के खूंखार भूखे जंगली शेर का जबड़ा फाड़ डाला था । 4. राणा सांगा के शरीर पर युद्धोंके छोटे-बड़े 80 घाव थे। युद्धों में घायल होने के कारण उनके एक हाथ नहीं था, एक पैर नही था, एक आँख नहीं थी। उन्होंने अपने जीवन-काल में 100 से भी अधिक युद्ध लड़े थे । 5. एक राजपूत वीर जुंझार जो मुगलों से लड़ते वक्त शीश कटने के बाद भी घंटे तक लड़ते रहे आज उनका सिर बाड़मेर में है, जहाँ छोटा मंदिर हैं और धड़ पाकिस्तान में है। 6. रायमलोत कल्ला का धड़, शीश कटने के बाद लड़ता-लड़ता घोड़े पर पत्नी रानी के पास पहुंच गया था तब रानी ने गंगाजल के छींटे डाले तब धड़ शांत हुआ। 7. चित्तौड़ में अकबर से हुए युद्ध में जयमाल राठौड़ पैर ज...