भारत के इतिहास में मिहिरभोज से बडा आज तक कोई भी सनातन धर्म रक्षक एवं राष्ट्र रक्षक नही हुआ। एक ऐसे राजपूत क्षत्रिय योद्धा जिन्होंने अरबों से लगभग 40 युद्ध कर अरबों को भारत से पलायन करने पर मजबूर कर दिया ।
प्रतिहार_क्षत्रिय_राजवंश का इतिहास < --- सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार जी की जयंती पर प्रतिहार वंश की संपूर्ण इतिहास जानिए ।।
प्रतिहार_क्षत्रिय_राजवंश का इतिहास < ---
कल सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार जी की जयंती पर प्रतिहार वंश की संपूर्ण इतिहास जानिए ।।
प्रतिहार क्षत्रिय एक ऐसा वंश है जिसकी उत्पत्ति पर कई इतिहासकारों ने शोध किए जिनमे से कुछ अंग्रेज भी थे और वे अपनी सीमित मानसिक क्षमताओं तथा भारतीय समाज के ढांचे को न समझने के कारण इस वंश की उतपत्ति पर कई तरह के विरोधाभास उतपन्न कर गए। प्रतिहार नरेश नागभट्ट प्रथम के सेनापति गल्लक के शिलालेख जिसकी खोज डा. शांता रानी शर्मा जी ने की थी जिसका संपूर्ण विवरण उन्होंने अपनी पुस्तक " Society and culture Rajasthan c. AD. 700 - 900 पर किया है। इस शिलालेख मे नागभट्ट प्रथम के द्वारा बस्ती को उखाड फेकने एवं प्रतिहारों के को बिल्कुल भी नापसंद करने की जानकारी दी गई है। मनुस्मृति में प्रतिहार,परिहार, पडिहार तीनों शब्दों का प्रयोग हुआ हैं। परिहार एक तरह से क्षत्रिय शब्द का पर्यायवाची है।
कल सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार जी की जयंती पर प्रतिहार वंश की संपूर्ण इतिहास जानिए ।।
प्रतिहार क्षत्रिय एक ऐसा वंश है जिसकी उत्पत्ति पर कई इतिहासकारों ने शोध किए जिनमे से कुछ अंग्रेज भी थे और वे अपनी सीमित मानसिक क्षमताओं तथा भारतीय समाज के ढांचे को न समझने के कारण इस वंश की उतपत्ति पर कई तरह के विरोधाभास उतपन्न कर गए। प्रतिहार नरेश नागभट्ट प्रथम के सेनापति गल्लक के शिलालेख जिसकी खोज डा. शांता रानी शर्मा जी ने की थी जिसका संपूर्ण विवरण उन्होंने अपनी पुस्तक " Society and culture Rajasthan c. AD. 700 - 900 पर किया है। इस शिलालेख मे नागभट्ट प्रथम के द्वारा बस्ती को उखाड फेकने एवं प्रतिहारों के को बिल्कुल भी नापसंद करने की जानकारी दी गई है। मनुस्मृति में प्रतिहार,परिहार, पडिहार तीनों शब्दों का प्रयोग हुआ हैं। परिहार एक तरह से क्षत्रिय शब्द का पर्यायवाची है।
क्षत्रिय वंश की इस शाखा के मूल पुरूष भगवान राम के भाई लक्ष्मण जी हैं। लक्ष्मण का उपनाम, प्रतिहार, होने के कारण उनके वंशज प्रतिहार, कालांतर में परिहार कहलाएं।
ये सूर्यवंशी कुल के क्षत्रिय हैं। हरकेलि नाटक, ललित विग्रह नाटक, हम्मीर महाकाव्य पर्व, कक्कुक प्रतिहार का अभिलेख, बाउक प्रतिहार का अभिलेख, नागभट्ट प्रशस्ति, वत्सराज प्रतिहार का शिलालेख, मिहिरभोज की ग्वालियर प्रशस्ति आदि कई महत्वपूर्ण शिलालेखों एवं ग्रंथों में परिहार वंश को सूर्यवंशी एवं साफ - साफ लक्ष्मण जी का वंशज
बताया गया है। लक्ष्मण के पुत्र अंगद जो कि कारापथ (राजस्थान एवं पंजाब) के शासक थे,उन्ही के वंशज प्रतिहार है। इस वंश की 126 वीं पीढ़ी में राजा हरिश्चन्द्र प्रतिहार (लगभग 590 ईस्वीं) का उल्लेख मिलता है। इनकी दूसरी पत्नी भद्रा से चार पुत्र थे।जिन्होंने कुछ धनसंचय और एक सेना का संगठन कर अपने पूर्वजों का राज्य माडव्यपुर को जीत लिया और मंडोर राज्य का निर्माण किया, जिसका राजा रज्जिल प्रतिहार बना। इसी का पौत्र नागभट्ट प्रतिहार था, जो अदम्य साहसी,महात्वाकांक्षी और असाधारण योद्धा था। इस वंश में आगे चलकर कक्कुक राजा हुआ, जिसका राज्य पश्चिम भारत में सबल रूप से उभरकर सामने आया। पर इस वंश में प्रथम उल्लेखनीय राजा नागभट्ट प्रथम है, जिसका राज्यकाल 730 से 760 माना जाता है। उसने जालौर को अपनी राजधानी बनाकर एक शक्तिशाली परिहार राज्य की नींव डाली। इसी समय अरबों ने सिंध प्रांत जीत लिया और मालवा और राज्यों पर आक्रमण कर दिया।
ऐसे ही चलकर सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार, सनातन धर्म रक्षक ।।
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बताया गया है। लक्ष्मण के पुत्र अंगद जो कि कारापथ (राजस्थान एवं पंजाब) के शासक थे,उन्ही के वंशज प्रतिहार है। इस वंश की 126 वीं पीढ़ी में राजा हरिश्चन्द्र प्रतिहार (लगभग 590 ईस्वीं) का उल्लेख मिलता है। इनकी दूसरी पत्नी भद्रा से चार पुत्र थे।जिन्होंने कुछ धनसंचय और एक सेना का संगठन कर अपने पूर्वजों का राज्य माडव्यपुर को जीत लिया और मंडोर राज्य का निर्माण किया, जिसका राजा रज्जिल प्रतिहार बना। इसी का पौत्र नागभट्ट प्रतिहार था, जो अदम्य साहसी,महात्वाकांक्षी और असाधारण योद्धा था। इस वंश में आगे चलकर कक्कुक राजा हुआ, जिसका राज्य पश्चिम भारत में सबल रूप से उभरकर सामने आया। पर इस वंश में प्रथम उल्लेखनीय राजा नागभट्ट प्रथम है, जिसका राज्यकाल 730 से 760 माना जाता है। उसने जालौर को अपनी राजधानी बनाकर एक शक्तिशाली परिहार राज्य की नींव डाली। इसी समय अरबों ने सिंध प्रांत जीत लिया और मालवा और राज्यों पर आक्रमण कर दिया।
ऐसे ही चलकर सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार, सनातन धर्म रक्षक ।।
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